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कविता

प्यार

त्रिलोचन


जब भौंरे ने आकर पहले पहले गाया
         कली मौन थी। नहीं जानती थी वह भाषा
         इस दुनिया की, कैसी होती है अभिलाषा
इस से भी अनजान पड़ी थी। तो भी आया

जीवन का यह अतिथि, ज्ञान का सहज सलोना
          शिशु, जिस को दुनिया में प्यार कहा जाता है,
          स्वाभिमान-मानवता का पाया जाता है
जिस से नाता। उस में कुछ ऐसा है टोना

जिस से यह सारी दुनिया फिर राई रत्ती
          और दिखाई देने लगती है। क्या जाने
          कौन राग छाती से लगता है अकुलाने,
इंद्रधनुष सी लहराती है पत्ती पत्ती।

बिना बुलाए जो आता है प्यार वही है।
प्राणों की धारा उसमें चुपचाप बही है।

 


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